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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-76

Chapter-18_1.76

SHLOKA

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः।।18.76।।

PADACHHED

राजन्_संस्मृत्य, संस्मृत्य, संवादम्_इमम्_अद्भुतम्‌,
केशवार्जुनयो:, पुण्यम्‌, हृष्यामि, च, मुहुर्मुहु: ॥ ७६ ॥

ANAVYA

(हे) राजन्! केशवार्जुनयो: इमं पुण्यं च
अद्भुतं संवादं संस्मृत्य संस्मृत्य (अहम्) मुहुर्मुहु: हृष्यामि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) राजन्! [हे राजन्!], केशवार्जुनयो: [श्रीकृष्ण और अर्जुन के], इमम् [इस ((रहस्य युक्त)),], पुण्यम् [कल्याणकारक], च [और],
अद्भुतम् [अद्भुत], संवादम् [संवाद को], संस्मृत्य संस्मृत्य [पुन:-पुन: स्मरण करके], {(अहम्) [मै]}, मुहुर्मुहु: [बार-बार], हृष्यामि [हर्षित हो रहा हूँ।],

ANUVAAD

हे राजन्! श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस ((रहस्य युक्त)), कल्याणकारक और
अद्भुत संवाद को पुन:-पुन: स्मरण करके (मैं) बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।

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