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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-73

Chapter-18_1.73

SHLOKA

अर्जुन उवाच -
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।18.73।।

PADACHHED

अर्जुन उवाच -
नष्ट:, मोह:, स्मृति:_लब्धा, त्वत्प्रसादात्_मया_अच्युत,
स्थित:_अस्मि, गत-सन्देह:, करिष्ये, वचनम्‌, तव ॥ ७३ ॥

ANAVYA

अर्जुन उवाच -
(हे) अच्युत! त्वत्प्रसादात्‌ (मम) मोह: नष्ट: (च) मया
स्मृति: लब्धा, (अहम्) (इदानीं) गतसन्देह: स्थित: अस्मि (अतः) तव वचनं करिष्ये।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

अर्जुन उवाच - [अर्जुन ने कहा - ], (हे) अच्युत! [हे अच्युत!], त्वत्प्रसादात् [आपकी कृपा से], {(मम) [मेरा]}, मोह: [मोह], नष्ट: (च) [नष्ट हो गया (और)], मया [मैंने],
स्मृति: [स्मृति], लब्धा [प्राप्त कर ली है,], {(अहम्) [अब]}, {(इदानीम्) [मैं]}, गतसन्देह: [संशय रहित होकर], स्थित: [स्थित], अस्मि [हूँ,], {(एतस्मात्) [अत:]}, तव [आपकी], वचनम् करिष्ये [आज्ञा का पालन करूँगा।]',

ANUVAAD

अर्जुन ने कहा - हे अच्युत! आपकी कृपा से (मेरा) मोह नष्ट हो गया (और) मैंने
स्मृति प्राप्त कर ली है, (अब) (मैं) संशय रहित होकर स्थित हूँ, (अत:) आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।

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