Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-71
SHLOKA
श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः।
सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।18.71।।
सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।18.71।।
PADACHHED
श्रद्धावान्_अनसूय:_च, शृणुयात्_अपि, य:, नर:,
स:_अपि, मुक्त:, शुभान्_लोकान्_प्राप्नुयात्_पुण्य-कर्मणाम् ॥ ७१ ॥
स:_अपि, मुक्त:, शुभान्_लोकान्_प्राप्नुयात्_पुण्य-कर्मणाम् ॥ ७१ ॥
ANAVYA
य: नर: श्रद्धावान् च अनसूय: शृणुयात् अपि,
स: अपि मुक्त: पुण्यकर्मणां शुभान् लोकान् प्राप्नुयात्।
स: अपि मुक्त: पुण्यकर्मणां शुभान् लोकान् प्राप्नुयात्।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
य: [जो], नर: [मनुष्य], श्रद्धावान् [श्रद्धा से युक्त], च [और], अनसूय: [दोष-दृष्टि से रहित होकर ((इस गीताशास्त्र का))], शृणुयात् अपि [((केवल)) श्रवण भी करेगा,],
स: [((तो)) वह], अपि [भी ((पापों से))], मुक्त: [मुक्त होकर], पुण्यकर्मणाम् [उत्तम कर्म करने वालों के], शुभान् [श्रेष्ठ], लोकान् [लोकों को], प्राप्नुयात् [प्राप्त होगा।],
स: [((तो)) वह], अपि [भी ((पापों से))], मुक्त: [मुक्त होकर], पुण्यकर्मणाम् [उत्तम कर्म करने वालों के], शुभान् [श्रेष्ठ], लोकान् [लोकों को], प्राप्नुयात् [प्राप्त होगा।],
ANUVAAD
जो मनुष्य श्रद्धा से युक्त और दोष-दृष्टि से रहित होकर ((इस गीताशास्त्र का)) ((केवल)) श्रवण भी करेगा,
((तो)) वह भी ((पापों से)) मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा।
((तो)) वह भी ((पापों से)) मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा।