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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-59

Chapter-18_1.59

SHLOKA

यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।
मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।।18.59।।

PADACHHED

यत्_अहङ्कारम्_आश्रित्य, न, योत्स्ये, इति, मन्यसे,
मिथ्या_एष:, व्यवसाय:_ते, प्रकृति:_त्वाम्, नियोक्ष्यति ॥ ५९ ॥

ANAVYA

यत्‌ (त्वम्) अहङ्कारम्‌ आश्रित्य इति मन्यसे (यत्) (अहम्) न योत्स्ये (तर्हि) ते
एष: व्यवसाय: मिथ्या ( अस्ति), (यत:) (ते) प्रकृति: त्वां नियोक्ष्यति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यत् (त्वम्) [जो (तुम)], अहङ्कारम् [अहंकार का], आश्रित्य [आश्रय लेकर], इति [यह], मन्यसे (यत्) [मान रहे हो (कि)], (अहम्) न योत्स्ये [मैं युद्ध नहीं करूँगा,], {(तर्हि) [तो]}, ते [तुम्हारा],
एष: [यह], व्यवसाय: [निश्चय], मिथ्या (अस्ति) [मिथ्या है;], {(यत:) [क्योंकि]}, {(ते) [तुम्हारा]}, प्रकृति: [स्वभाव], त्वाम् [तुम्हे], नियोक्ष्यति [((जबरदस्ती युद्ध में)) लगा देगा।],

ANUVAAD

जो (तुम) अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहे हो (कि) (मैं) युद्ध नहीं करूँगा, (तो) तुम्हारा
यह निश्चय मिथ्या है; क्योंकि (तुम्हारा) स्वभाव तुम्हे ((जबरदस्ती युद्ध में)) लगा देगा।

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