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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-58

Chapter-18_1.58

SHLOKA

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।18.58।।

PADACHHED

मच्चित्त:, सर्व-दुर्गाणि, मत्प्रसादात्_तरिष्यसि,
अथ, चेत्_त्वम्_अहङ्कारात्_न, श्रोष्यसि, विनङ्क्ष्यसि ॥ ५८ ॥

ANAVYA

मच्चित्त: त्वं मत्प्रसादात्‌ सर्वदुर्गाणि तरिष्यसि अथ
चेत्‌ अहङ्कारात्‌ न श्रोष्यसि (तर्हि) विनङ्क्ष्यसि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

मच्चित्त: [((उपर्युक्त प्रकार से)) मुझमें चित्त वाला होकर], त्वम् [तुम], मत्प्रसादात् [मेरी कृपा से], सर्वदुर्गाणि [समस्त संकटों को ((अनायास ही))], तरिष्यसि [पार कर जाओगे], अथ [और],
चेत् [यदि], अहङ्कारात् [अहंकार के कारण ((मेरे वचनों को))], न [नहीं], श्रोष्यसि [सुनोगे], {(तर्हि) [तो]}, विनङ्क्ष्यसि [नष्ट हो जाओगे अर्थात् परमार्थ से भ्रष्ट हो जाओगे।],

ANUVAAD

((उपर्युक्त प्रकार से)) मुझमें चित्त वाला होकर तुम मेरी कृपा से समस्त संकटों को ((अनायास ही)) पार कर जाओगे और
यदि अहंकार के कारण ((मेरे वचनों को)) नहीं सुनोगे (तो) नष्ट हो जाओगे अर्थात् परमार्थ से भ्रष्ट हो जाओगे।

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