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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-35

Chapter-18_1.35

SHLOKA

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी।।18.35।।

PADACHHED

यया, स्वप्नम्‌, भयम्‌, शोकम्‌, विषादम्‌, मदम्_एव, च,
न, विमुञ्चति, दुर्मेधा:, धृति:, सा, पार्थ, तामसी ॥ ३५ ॥

ANAVYA

(हे) पार्थ! दुर्मेधा: यया (धृत्या) स्वप्नं भयं शोकं च
विषादम् (च) मदम्‌ एव न विमुञ्चति सा धृति: तामसी (वर्तते)।

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(हे) पार्थ! [हे पार्थ!], दुर्मेधा: [दुष्ट बुद्धि वाला ((मनुष्य))], यया [जिस], {(धृत्या) [धारण शक्ति के द्वारा]}, स्वप्नम् [निद्रा,], भयम् [भय,], शोकम् [चिन्ता], च [और],
विषादम् (च) [दुःख को (तथा)], मदम् [उन्मत्तता को], एव [भी], न विमुञ्चति [नहीं छोड़ता अर्थात् धारण किये रहता है-], सा [वह], धृति: [धारण शक्ति], तामसी (वर्तते) [तामसी है।],

ANUVAAD

हे पार्थ! दुष्ट बुद्धि वाला ((मनुष्य)) जिस (धारण शक्ति) के द्वारा निद्रा, भय, चिन्ता और
दुःख को (तथा) उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात् धारण किये रहता है- वह धारण शक्ति तामसी है।

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