Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-29
SHLOKA
बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।18.29।।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।18.29।।
PADACHHED
बुद्धे:_भेदम्, धृते:_च_एव, गुणत:_त्रि-विधम्, शृणु,
प्रोच्यमानम्_अशेषेण, पृथक्त्वेन, धनञ्जय ॥ २९ ॥
प्रोच्यमानम्_अशेषेण, पृथक्त्वेन, धनञ्जय ॥ २९ ॥
ANAVYA
(हे) धनञ्जय! (त्वम्) बुद्धे: च धृते: एव गुणत: त्रिविधं
भेदम् (मया) अशेषेण पृथक्त्वेन प्रोच्यमानं शृणु।
भेदम् (मया) अशेषेण पृथक्त्वेन प्रोच्यमानं शृणु।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) धनञ्जय! (त्वम्) [हे धनंजय! ((अब)) (तुम)], बुद्धे: [बुद्धि का], च [और], धृते: [धृति का], एव [भी], गुणत: [गुणों के अनुसार], त्रिविधम् [तीन प्रकार का],
भेदम् [भेद], {(मया) [मेरे द्वारा]}, अशेषेण [सम्पूर्णता से], पृथक्त्वेन [विभाग पूर्वक], प्रोच्यमानम् [कहा जाने वाला], शृणु [सुनो।]
भेदम् [भेद], {(मया) [मेरे द्वारा]}, अशेषेण [सम्पूर्णता से], पृथक्त्वेन [विभाग पूर्वक], प्रोच्यमानम् [कहा जाने वाला], शृणु [सुनो।]
ANUVAAD
हे धनंजय! ((अब)) (तुम) बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का
भेद (मेरे द्वारा) सम्पूर्णता से विभाग पूर्वक कहा जाने वाला सुनो।
भेद (मेरे द्वारा) सम्पूर्णता से विभाग पूर्वक कहा जाने वाला सुनो।