Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-20
SHLOKA
सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।18.20।।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।18.20।।
PADACHHED
सर्व-भूतेषु, येन_एकम्, भावम्_अव्ययम्_ईक्षते,
अविभक्तम्, विभक्तेषु, तत्_ज्ञानम्, विद्धि, सात्त्विकम् ॥ २० ॥
अविभक्तम्, विभक्तेषु, तत्_ज्ञानम्, विद्धि, सात्त्विकम् ॥ २० ॥
ANAVYA
येन विभक्तेषु सर्वभूतेषु एकम् अव्ययं भावम्
अविभक्तम् ईक्षते तत् ज्ञानम् (तु) (त्वम्) सात्त्विकं विद्धि।
अविभक्तम् ईक्षते तत् ज्ञानम् (तु) (त्वम्) सात्त्विकं विद्धि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
येन [जिस ((ज्ञान)) से ((मनुष्य))], विभक्तेषु [पृथक्-पृथक्], सर्वभूतेषु [सब भूतों में], एकम् [एक], अव्ययम् [अविनाशी], भावम् [((परमात्म)) भाव को],
अविभक्तम् [विभाग रहित ((समभाव से स्थित))], ईक्षते [देखता है,], तत् [उस], ज्ञानम् (तु) [ज्ञान को (तो)], {(त्वम्) [तुम]}, सात्त्विकम् [सात्त्विक], विद्धि [जानो।],
अविभक्तम् [विभाग रहित ((समभाव से स्थित))], ईक्षते [देखता है,], तत् [उस], ज्ञानम् (तु) [ज्ञान को (तो)], {(त्वम्) [तुम]}, सात्त्विकम् [सात्त्विक], विद्धि [जानो।],
ANUVAAD
जिस ((ज्ञान)) से ((मनुष्य)) पृथक्-पृथक् सब भूतों में एक अविनाशी ((परमात्म)) भाव को
विभाग रहित ((समभाव से स्थित)) देखता है, उस ज्ञान को (तो) (तुम) सात्त्विक जानो।
विभाग रहित ((समभाव से स्थित)) देखता है, उस ज्ञान को (तो) (तुम) सात्त्विक जानो।