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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-19

Chapter-18_1.19

SHLOKA

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।
प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।18.19।।

PADACHHED

ज्ञानम्‌, कर्म, च, कर्ता, च, त्रिधा_एव, गुण-भेदत:,
प्रोच्यते, गुण-सङ्ख्याने, यथावत्_शृणु, तानि_अपि ॥ १९ ॥

ANAVYA

गुणसङ्ख्याने ज्ञानं च कर्म च कर्ता गुणभेदत:
त्रिधा एव प्रोच्यते तानि अपि (त्वम्) (मत्तः) यथावत्‌ शृणु।

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गुणसङ्ख्याने [गुणों की संख्या करने वाले ((शास्त्र)) में], ज्ञानम् [ज्ञान], च [और], कर्म [कर्म], च [तथा], कर्ता [कर्ता], गुणभेदत: [गुणों के भेद से],
त्रिधा [तीन-तीन प्रकार के], एव [ही], प्रोच्यते [कहे गये हैं;], तानि [उनको], अपि [भी], {(त्वम्) [तुम]}, {(मत्तः) [मुझसे]}, यथावत् [भलीभाँति], शृणु [सुनो।],

ANUVAAD

गुणों की संख्या करने वाले ((शास्त्र)) में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से
तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं; उनको भी (तुम) (मुझसे) भलीभाँति सुनो।

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