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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-8

Chapter-16_1.8

SHLOKA

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्।।16.8।।

PADACHHED

असत्यम्_अप्रतिष्ठम्‌, ते, जगत्_आहु:_अनीश्वरम्‌,
अपरस्पर-सम्भूतम्‌, किम्_अन्यत्_काम-हैतुकम्‌ ॥ ८ ॥

ANAVYA

ते आहु: जगत् अप्रतिष्ठम्‌ असत्यम्‌ (च) अनीश्वरम्‌
अपरस्परसम्भूतं (अतः) कामहैतुकम्‌ (एव) अन्यत्‌ किम्।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

ते [वे ((आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य))], आहु: [कहा करते है ((कि)),], जगत् [जगत्], अप्रतिष्ठम् [आश्रय रहित,], असत्यम् (च) [सर्वथा असत्य (और)], अनीश्वरम् [बिना ईश्वर के,],
अपरस्परसम्भूतम् [अपने-आप ((केवल स्त्री-पुरुष के)) संयोग से उत्पन्न है,], {(अतः) [अतएव]}, कामहैतुकम् (एव) [केवल काम (ही) इसका कारण है।], अन्यत् [इसके सिवा ((और))], किम् [क्या है?],

ANUVAAD

वे ((आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य)) कहा करते है ((कि)), जगत् आश्रय रहित, सर्वथा असत्य (और) बिना ईश्वर के,
अपने-आप ((केवल स्त्री-पुरुष के)) संयोग से उत्पन्न है, (अतएव) केवल काम (ही) इसका कारण है। इसके सिवा ((और)) क्या है?

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