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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-6

Chapter-16_1.6

SHLOKA

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।।16.6।।

PADACHHED

द्वौ, भूत-सर्गौ, लोके_अस्मिन्‌, दैव:, आसुर:, एव, च,
दैव:, विस्तरश:, प्रोक्त:, आसुरम्, पार्थ, मे, शृणु ॥ ६ ॥

ANAVYA

(हे) पार्थ! अस्मिन्‌ लोके भूतसर्गौ द्वौ एव (स्तः) दैव: च आसुर:;
दैव: (तु) विस्तरश: प्रोक्त:, (अधुना) (त्वम्) आसुरं मे शृणु।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) पार्थ! [हे अर्जुन!], अस्मिन् [इस], लोके [लोक में], भूतसर्गौ [भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय], द्वौ एव (स्तः) [दो ही प्रकार का है, ((एक तो))], दैव: [दैवी-प्रकृति वाला], च [और ((दूसरा))], आसुर: [आसुरी-प्रकृति वाला ((उनमें से))],
दैव: (तु) [दैवी-प्रकृति वाला, (तो)], विस्तरश: [विस्तार पूर्वक], प्रोक्त: [कहा गया,], {(अधुना) [अब]}, {(त्वम्) [तुम]}, आसुरम् [आसुरी-प्रकृति वाले ((मनुष्य समुदाय)) को ((भी)) विस्तार पूर्वक], मे [मुझसे], शृणु [सुनो।],

ANUVAAD

हे अर्जुन! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, ((एक तो)) दैवी-प्रकृति वाला और ((दूसरा)) आसुरी-प्रकृति वाला ((उनमें से))
दैवी-प्रकृति वाला (तो) विस्तार पूर्वक कहा गया, (अब) (तुम) आसुरी-प्रकृति वाले ((मनुष्य समुदाय)) को ((भी)) विस्तार पूर्वक मुझसे सुनो।

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