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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-5

Chapter-16_1.5

SHLOKA

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।16.5।।

PADACHHED

दैवी, सम्पत्_विमोक्षाय, निबन्धाय_आसुरी, मता,
मा, शुच:, सम्पदम्‌, दैवीम्_अभिजात:_असि, पाण्डव ॥ ५ ॥

ANAVYA

दैवी सम्पत्‌ विमोक्षाय (च) आसुरी (सम्पत्) निबन्धाय मता (अत:)
(हे) पाण्डव! (त्वम्) मा शुच: (यत:) (त्वम्) दैवीं सम्पदम्‌ अभिजात: असि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

दैवी सम्पत् [दैवी सम्पदा], विमोक्षाय (च) [मुक्ति के लिये (और)], आसुरी (सम्पत्) [आसुरी (सम्पदा)], निबन्धाय [बाँधने के लिये], मता [मानी गयी है।], {(अत:) [इसलिये]},
(हे) पाण्डव! (त्वम्) [हे अर्जुन! (तुम)], मा शुच: [शोक मत करो;], {(यत:) [क्योंकि]}, {(त्वम्) [तुम]}, दैवीं सम्पदम् [दैवी सम्पदा को], अभिजात: [लेकर उत्पन्न हुए], असि [हो।],

ANUVAAD

दैवी सम्पदा मुक्ति के लिये (और) आसुरी (सम्पदा) बाँधने के लिये मानी गयी है। (इसलिये)
हे अर्जुन! (तुम) शोक मत करो; क्योंकि (तुम) दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुये हो।

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