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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-3

Chapter-16_1.3

SHLOKA

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।16.3।।

PADACHHED

तेज:, क्षमा, धृति:, शौचम्_अद्रोह:, नातिमानिता,
भवन्ति, सम्पदम्‌, दैवीम्_अभिजातस्य, भारत ॥ ३ ॥

ANAVYA

तेज: क्षमा धृति: शौचम्‌ (च) अद्रोह:
नातिमानिता (च) (हे) भारत! दैवीं सम्पदम्‌ अभिजातस्य (लक्षणं) भवन्ति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तेज: [तेज,], क्षमा [क्षमा,], धृति: [धैर्य,], शौचम् (च) [बाहर की शुद्धि (एवं)], अद्रोह: [((किसी में भी)) शत्रुभाव का न होना (और)],
नातिमानिता (च) [(और) अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव-((ये सब))], (हे) भारत! [हे अर्जुन!], दैवीम् सम्पदम् [दैवी सम्पदा को], अभिजातस्य (लक्षणम्) [लेकर उत्पन्न हुए ((पुरुष)) के (लक्षण)], भवन्ति [हैं।],

ANUVAAD

तेज, क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि (एवं) ((किसी में भी)) शत्रुभाव का न होना (और)
अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव-((ये सब)) हे अर्जुन! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए ((पुरुष)) के (लक्षण) हैं।

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