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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-2

Chapter-16_1.2

SHLOKA

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।16.2।।

PADACHHED

अहिंसा, सत्यम्_अक्रोध:_त्याग:, शान्ति:_अपैशुनम्‌,
दया, भूतेषु_अलोलुप्त्वम्, मार्दवम्‌, ह्री:_अचापलम्‌ ॥ २ ॥

ANAVYA

अहिंसा सत्यम्‌ अक्रोध: त्याग: शान्ति:
अपैशुनं भूतेषु दया अलोलुप्त्वं मार्दवं ह्री: (च) अचापलम्‌।

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अहिंसा [((मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी)) किसी को कष्ट न देना,], सत्यम् [यथार्थ और प्रिय भाषण], अक्रोध: [((अपना अपकार करने वाले पर भी)) क्रोध का न होना,], त्याग: [((कर्मो में कर्तापन के अभिमान का)) त्याग,], शान्ति: [((अन्त:करण की उपरति अर्थात्)) चित्त की चंचलता का अभाव,],
अपैशुनम् [((किसी की भी)) निन्दादि न करना,], भूतेषु [((सब)) भूतप्राणियों में], दया [((हेतु रहित)) दया,], अलोलुप्त्वम् [((इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें)) आसक्ति का न होना,], मार्दवम् [कोमलता,], ह्री: (च) [((लोक और शास्त्र से विरूद्ध आचरण में)) लज्जा (और)], अचापलम् [व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव-],

ANUVAAD

((मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी)) किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, ((अपना अपकार करने वाले पर भी)) क्रोध का न होना, ((कर्मो में कर्तापन के अभिमान का)) त्याग, ((अन्त:करण की उपरति अर्थात्)) चित्त की चंचलता का अभाव,
((किसी की भी)) निन्दादि न करना, ((सब)) भूतप्राणियों में ((हेतु रहित)) दया, ((इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें)) आसक्ति का न होना, कोमलता, ((लोक और शास्त्र से विरूद्ध आचरण में)) लज्जा (और) व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव-

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