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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-20

Chapter-16_1.20

SHLOKA

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्।।16.20।।

PADACHHED

आसुरीम्‌, योनिम्_आपन्ना:, मूढा:, जन्मनि, जन्मनि,
माम्_अप्राप्य_एव, कौन्तेय, तत:, यान्ति_अधमाम्‌, गतिम्‌ ॥ २० ॥

ANAVYA

(हे) कौन्तेय! (ते) मूढा: माम्‌ अप्राप्य एव जन्मनि जन्मनि आसुरीं
योनिम्‌ आपन्ना:, तत: अधमां गतिं यान्ति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) कौन्तेय! [हे अर्जुन!], (ते) मूढा: [(वे) मूर्ख], माम् [मुझको], अप्राप्य [न प्राप्त होकर], एव [ही], जन्मनि [जन्म-], जन्मनि [जन्म में], आसुरीम् [आसुरी],
योनिम् [योनि को], आपन्ना: [प्राप्त होते हैं,], तत: [((फिर)) उससे भी], अधमाम् [अति नीच], गतिम् [गति को], यान्ति [प्राप्त होते है अर्थात् घोर नरक में पड़ते हैं।],

ANUVAAD

हे अर्जुन! (वे) मूर्ख मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म- जन्म में आसुरी
योनि को प्राप्त होते हैं, ((फिर)) उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते है अर्थात् घोर नरक में पड़ते हैं।

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