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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-1

Chapter-16_1.1

SHLOKA

श्रीभगवानुवाच -
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।16.1।।

PADACHHED

श्रीभगवान् उवाच -
अभयम्, सत्त्व-संशुद्धि:_ज्ञान-योग-व्यवस्थिति:,
दानम्‌, दम:_च, यज्ञ:_च, स्वाध्याय:_तप:, आर्जवम्‌ ॥ १ ॥

ANAVYA

श्रीभगवान् उवाच -
अभयं सत्त्वसंशुद्धि: ज्ञानयोगव्यवस्थिति: च दानं
दम: यज्ञ: (च) स्वाध्याय: तप: च आर्जवम्‌।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], अभयम् [भय का ((सर्वथा)) अभाव,], सत्त्वसंशुद्धि: [अन्त:करण की पूर्ण निर्मलता,], ज्ञानयोगव्यवस्थिति: [तत्त्वज्ञान के लिये ध्यानयोग में निरन्तर दृढ़ स्थिति], च [और], दानम् [((सात्त्विक)) दान,],
दम: [((इन्द्रियों का)) दमन,], यज्ञ: (च) [यज्ञ अर्थात् ((भगवान्, देवता और गुरूजनों की पूजा तथा अग्निहोत्रादि उत्तम कर्मों का आचरण)) (एवं)], स्वाध्याय: [((वेद-शास्त्रों का)) पठन-पाठन ((तथा भगवान् के नाम और गुणों का कीर्तन)),], तप: [((स्वधर्म पालन के लिये)) कष्ट सहना], च [और], आर्जवम् [((शरीर तथा इन्द्रियों के सहित)) अन्त:करण की सरलता-],

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा - भय का ((सर्वथा)) अभाव, अन्त:करण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिये ध्यानयोग में निरन्तर दृढ़ स्थिति और ((सात्त्विक)) दान,
((इन्द्रियों का)) दमन, यज्ञ अर्थात् ((भगवान्, देवता और गुरूजनों की पूजा तथा अग्निहोत्रादि उत्तम कर्मों का आचरण)) (एवं) ((वेद-शास्त्रों का)) पठन-पाठन ((तथा भगवान् के नाम और गुणों का कीर्तन)), ((स्वधर्म पालन के लिये)) कष्ट सहना और ((शरीर तथा इन्द्रियों के सहित)) अन्त:करण की सरलता-

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