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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-18

Chapter-16_1.18

SHLOKA

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।16.18।।

PADACHHED

अहङ्कारम्, बलम्‌, दर्पम्, कामम्‌, क्रोधम्‌, च, संश्रिता:,
माम्_आत्म-पर-देहेषु, प्रद्विषन्त:_अभ्यसूयका: ॥ १८ ॥

ANAVYA

(ते) अहङ्कारं बलं दर्पं कामं (च) क्रोधं संश्रिता: च
अभ्यसूयका: आत्मपरदेहेषु मां प्रद्विषन्त:।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(ते) अहङ्कारम् [(वे) अहंकार,], बलम् [बल,], दर्पम् [घमण्ड,], कामम् (च) [कामना (और)], क्रोधम् [क्रोधादि के], संश्रिता: [परायण], च [और],
अभ्यसूयका: [दूसरों की निन्दा करने वाले ((पुरूष))], आत्मपरदेहेषु [अपने और दूसरों के शरीर में ((स्थित))], माम् [मुझ ((अन्तर्यामी)) से], प्रद्विषन्त: [द्वेष करने वाले होते हैं।],

ANUVAAD

(वे) अहंकार, बल, घमण्ड, कामना (और) क्रोधादि के परायण और
दूसरों की निन्दा करने वाले ((पुरूष)) अपने और दूसरों के शरीर में ((स्थित)) मुझ ((अन्तर्यामी)) से द्वेष करने वाले होते हैं।

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