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Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-17

Chapter-16_1.17

SHLOKA

आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।16.17।।

PADACHHED

आत्म-सम्भाविता:, स्तब्धा:, धन-मान-मदान्विता:,
यजन्ते, नाम-यज्ञै:_ते, दम्भेन_अविधि-पूर्वकम्‌ ॥ १७ ॥

ANAVYA

ते आत्मसम्भाविता: स्तब्धा: धनमानमदान्विता:
नामयज्ञै: दम्भेन अविधिपूर्वकं यजन्ते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

ते [वे], आत्मसम्भाविता: [अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले], स्तब्धा: [घमण्डी ((पुरुष))], धनमानमदान्विता: [धन और मान के मद से युक्त होकर],
नामयज्ञै: [केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा], दम्भेन [पाखण्ड से], अविधिपूर्वकम् [शास्त्रविधि से रहित], यजन्ते [यजन करते हैं।],

ANUVAAD

वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले, घमण्डी ((पुरुष)) धन और मान के मद से युक्त होकर
केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्रविधि से रहित यजन करते हैं।

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