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Chapter 17 – श्रद्धात्रयविभागयोग Shloka-18

Chapter-17_1.18

SHLOKA

सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।।17.18।।

PADACHHED

सत्कार-मान-पूजार्थम्, तप:, दम्भेन, च_एव, यत्‌,
क्रियते, तत्_इह, प्रोक्तम्, राजसम्‌, चलम्_अध्रुवम्‌ ॥ १८ ॥

ANAVYA

यत्‌ तप: सत्कारमानपूजार्थम् च एव (वा) दम्भेन
क्रियते तत्‌ अध्रुवं (च) चलम्‌ (तपः) इह राजसं प्रोक्तम्।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यत् [जो], तप: [तप], सत्कारमानपूजार्थम् [सत्कार, मान और पूजा के लिये], च एव [तथा अन्य ((किसी स्वार्थ)) के लिये भी ((स्वभाव से))], {(वा) [या]}, दम्भेन [पाखण्ड से],
क्रियते [किया जाता है,], तत् [वह], अध्रुवम् (च) [अनिश्चित (एवं)], चलम् (तपः) [क्षणिक ((फल वाला)) (तप)], इह [यहाँ], राजसम् [राजस], प्रोक्तम् [कहा गया है।],

ANUVAAD

जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिये तथा अन्य ((किसी स्वार्थ)) के लिये भी ((स्वभाव से)) (या) पाखण्ड से
किया जाता है, वह अनिश्चित (एवं) क्षणिक ((फल वाला)) (तप) यहाँ राजस कहा गया है।

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