Chapter 16 – दैवासुरसम्पद्विभागयोग Shloka-15-16
SHLOKA
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।16.15।।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।।16.16।।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।16.15।।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।।16.16।।
PADACHHED
आढ्य:_अभिजनवान्_अस्मि, क:_अन्य:_अस्ति, सदृश:, मया,
यक्ष्ये, दास्यामि, मोदिष्ये, इति_अज्ञान-विमोहिता: ॥ १५ ॥
अनेक-चित्त-विभ्रान्ता:, मोह-जाल-समावृता:,
प्रसक्ता:, काम-भोगेषु, पतन्ति, नरके_अशुचौ ॥ १६ ॥
यक्ष्ये, दास्यामि, मोदिष्ये, इति_अज्ञान-विमोहिता: ॥ १५ ॥
अनेक-चित्त-विभ्रान्ता:, मोह-जाल-समावृता:,
प्रसक्ता:, काम-भोगेषु, पतन्ति, नरके_अशुचौ ॥ १६ ॥
ANAVYA
(अहम्) आढ्य: अभिजनवान् (च) अस्मि; मया सदृश: अन्य: क: अस्ति; (अहम्) यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्ये (च) इति
अज्ञानविमोहिता: (च) अनेकचित्तविभ्रान्ता: मोहजालसमावृता: (च) कामभोगेषु प्रसक्ता: (आसुराः) अशुचौ नरके पतन्ति।
अज्ञानविमोहिता: (च) अनेकचित्तविभ्रान्ता: मोहजालसमावृता: (च) कामभोगेषु प्रसक्ता: (आसुराः) अशुचौ नरके पतन्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(अहम्) आढ्य: [(मैं) बड़ा धनी], अभिजनवान् (च) [(और) बड़े कुटुम्ब वाला], अस्मि [हूँ।], मया [मेरे], सदृश: [समान], अन्य: [दूसरा], क: [कौन], अस्ति [है?], (अहम्) यक्ष्ये [(मैं) यज्ञ करूँगा,], दास्यामि [दान दूँगा], मोदिष्ये (च) [ (और) आमोद-प्रमोद करूँगा।], इति [इस प्रकार],
अज्ञानविमोहिता: (च) [अज्ञान से मोहित रहने वाले (तथा)], अनेकचित्तविभ्रान्ता: [अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले], मोहजालसमावृता: (च) [मोहरूप जाल से समावृत (और)], कामभोगेषु [विषय भोगों में], प्रसक्ता: [अत्यन्त आसक्त], {(आसुराः) [आसुर लोग]}, अशुचौ [महान् अपवित्र], नरके [नरक में], पतन्ति [गिरते हैं।],
अज्ञानविमोहिता: (च) [अज्ञान से मोहित रहने वाले (तथा)], अनेकचित्तविभ्रान्ता: [अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले], मोहजालसमावृता: (च) [मोहरूप जाल से समावृत (और)], कामभोगेषु [विषय भोगों में], प्रसक्ता: [अत्यन्त आसक्त], {(आसुराः) [आसुर लोग]}, अशुचौ [महान् अपवित्र], नरके [नरक में], पतन्ति [गिरते हैं।],
ANUVAAD
(मैं) बड़ा धनी (और) बड़े कुटुम्ब वाला हूँ। मेरे समान दूसरा कौन है? (मैं) यज्ञ करूँगा, दान दूँगा (और) आमोद-प्रमोद करूँगा। इस प्रकार
अज्ञान से मोहित रहने वाले (तथा) अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले, मोहरूप जाल से समावृत (और) विषय भोगों में अत्यन्त आसक्त (आसुर लोग) महान् अपवित्र नरक में गिरते हैं।
अज्ञान से मोहित रहने वाले (तथा) अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले, मोहरूप जाल से समावृत (और) विषय भोगों में अत्यन्त आसक्त (आसुर लोग) महान् अपवित्र नरक में गिरते हैं।