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Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-5

Chapter-15_1.5

SHLOKA

निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै-
र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।

PADACHHED

निर्मान-मोहा:, जित-सङ्ग-दोषा:, अध्यात्म-नित्या:,
विनिवृत्त-कामा:, द्वन्द्वैः_विमुक्ता:,
सुख-दु:ख-सञ्ज्ञै:_गच्छन्ति_अमूढा:, पदम्_अव्ययम्‌, तत् ॥ ५ ॥

ANAVYA

निर्मानमोहाः जितसङ्गदोषा: अध्यात्मनित्या: (च) विनिवृत्तकामा: (ते) सुखदु:खसञ्ज्ञै:
द्वन्द्वै: विमुक्ता: अमूढा: तत् अव्ययं पदं गच्छन्ति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

निर्मानमोहाः [जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है,], जितसङ्गदोषा: [जिन्होंने आसक्तिरूप दोष को जीत लिया है,], अध्यात्मनित्या: (च) [जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है (और)], विनिवृत्तकामा: [जिनकी कामनाएँ पूर्णरूप से नष्ट हो गयी हैं], {(ते) [वे]}, सुखदु:खसञ्ज्ञै: [सुख-दु:ख नामक],
द्वन्द्वै: [द्वन्द्वों से], विमुक्ता: [विमुक्त], अमूढा: [ज्ञानीजन], तत् [उस], अव्ययम् [अविनाशी], पदम् [परमपद को], गच्छन्ति [प्राप्त होते हैं।],

ANUVAAD

जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्तिरूप दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है (और) जिनकी कामनाएँ पूर्णरूप से नष्ट हो गयी हैं (वे) सुख-दु:ख नामक
द्वन्द्वों से विमुक्त ज्ञानीजन उस अविनाशी परमपद को प्राप्त होते हैं।

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