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Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-2

Chapter-15_1.2

SHLOKA

अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा
गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि
कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।।

PADACHHED

अध:_च_ऊर्ध्वम्‌, प्रसृता:_तस्य, शाखा:, गुण-प्रवृद्धा:,
विषय-प्रवाला:, अध:_च, मूलानि_अनुसन्ततानि,
कर्मानुबन्धीनि, मनुष्य-लोके ॥ २ ॥

ANAVYA

तस्य गुणप्रवृद्धा: (च) विषयप्रवाला: शाखा: अध: च ऊर्ध्वं प्रसृता: (च) मनुष्यलोके
कर्मानुबन्धीनि मूलानि (अपि) अध: च (ऊर्ध्वम्‌) अनुसन्ततानि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तस्य [उस ((संसार वृक्ष)) की], गुणप्रवृद्धा: (च) [((तीनों)) गुणों ((रूप जल)) के द्वारा बढ़ी हुई (एवं)], विषयप्रवाला: [विषय भोगरूप कोंपलों वाली], शाखा: [((देव, मनुष्य और तिर्यक् आदि योनिरूप)) शाखाएँ], अध: [नीचे], च [और], ऊर्ध्वम् [ऊपर], प्रसृता: (च) [सर्वत्र फैली हुई हैं (तथा)], मनुष्यलोके [मनुष्य लोक में],
कर्मानुबन्धीनि [कर्मों के अनुसार बाँधने वाली], मूलानि [((अहंता, ममता और वासनारूप)) जड़ें], {(अपि) [भी]}, अध: [नीचे], च [और], {(ऊर्ध्वम् ) [ऊपर]}, अनुसन्ततानि [सभी लोकों में व्याप्त हो रही हैं।],

ANUVAAD

उस ((संसार वृक्ष)) की ((तीनों)) गुणों ((रूप जल)) के द्वारा बढ़ी हुई (एवं) विषय भोगरूप कोंपलों वाली ((देव, मनुष्य और तिर्यक् आदि योनिरूप)) शाखाएँ नीचे और ऊपर सर्वत्र फैली हुई हैं (तथा) मनुष्य लोक में
कर्मों के अनुसार बाँधने वाली ((अहंता, ममता और वासनारूप)) जड़ें (भी) नीचे और (ऊपर) सभी लोकों में व्याप्त हो रही हैं।

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