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Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-16

Chapter-15_1.16

SHLOKA

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।15.16।।

PADACHHED

द्वौ_इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षर:_च_अक्षर:, एव, च,
क्षर:, सर्वाणि, भूतानि, कूटस्थ:_अक्षर:, उच्यते ॥ १६ ॥

ANAVYA

लोके क्षर: च अक्षर: एव इमौ द्वौ पुरुषौ (स्तः),
सर्वाणि भूतानि (तु) क्षर: च कूटस्थ: अक्षर: उच्यते।

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लोके [((इस)) संसार में], क्षर: [क्षर (नाशवान्)], च [और], अक्षर: [अक्षर ((अविनाशी))], एव [भी-], इमौ [ये], द्वौ [दो प्रकार के], पुरुषौ (स्तः) [पुरुष हैं।],
सर्वाणि [सम्पूर्ण], भूतानि (तु) [भूतप्राणियों के शरीर (तो)], क्षर: [क्षर ((नाशवान्))], च [और], कूटस्थ: [जीवात्मा], अक्षर: [अक्षर ((अविनाशी))], उच्यते [कहा जाता है।],

ANUVAAD

((इस)) संसार में क्षर (नाशवान्) और अक्षर ((अविनाशी)) भी- ये दो प्रकार के पुरुष हैं।
सम्पूर्ण भूतप्राणियों के शरीर (तो) क्षर ((नाशवान्)) और जीवात्मा अक्षर ((अविनाशी)) कहा जाता है।

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