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Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-15

Chapter-15_1.15

SHLOKA

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।

PADACHHED

सर्वस्य, च_अहम्‌, हृदि, सन्निविष्ट:, मत्त:, स्मृति:_ज्ञानम्_अपोहनम्‌, च, वेदै:_च, सर्वै:, अहम्_एव,
वेद्य:, वेदान्त-कृत्_वेद-वित्_एव, च_अहम् ॥ १५ ॥

ANAVYA

अहं (एव) सर्वस्य हृदि सन्निविष्ट: (अस्मि) च मत्त: स्मृति: ज्ञानं
च अपोहनम्‌ (भवति) च सर्वै: वेदै: अहम् एव वेद्य: (अस्मि) (च) वेदान्तकृत्‌ च वेदवित्‌ (अपि) अहम् एव (अस्मि)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

अहम् (एव) [मैं (ही)], सर्वस्य [सब ((प्राणियों)) के], हृदि [हृदय में], सन्निविष्ट: (अस्मि) [अंतर्यामीरूप से स्थित हूँ,], च [तथा], मत्त: [मुझसे ((ही))], स्मृति: [स्मृति,], ज्ञानम् [ज्ञान],
च [और], अपोहनम् [अपोहन], {(भवति) [होता है]}, च [और], सर्वै: [सब], वेदै: [वेदों द्वारा], अहम् [मैं], एव [ही], वेद्य: (अस्मि) (च) [जानने के योग्य हूँ (तथा)], वेदान्तकृत् [वेदान्त का कर्ता], च [और], वेदवित् (अपि) [वेदों को जानने वाला (भी)], अहम् [मैं], एव (अस्मि) [ही (हूँ)।],

ANUVAAD

मैं (ही) सब ((प्राणियों)) के हृदय में अंतर्यामीरूप से स्थित हूँ, तथा मुझसे ((ही)) स्मृति, ज्ञान
और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ (तथा) वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला (भी) मैं ही (हूँ)।

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