Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-17
SHLOKA
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।15.17।।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।15.17।।
PADACHHED
उत्तम:, पुरुष:_तु_अन्य:, परमात्मा_इति_उदाहृत:,
य:, लोक-त्रयम्_आविश्य, बिभर्ति_अव्यय:, ईश्वर: ॥ १७ ॥
य:, लोक-त्रयम्_आविश्य, बिभर्ति_अव्यय:, ईश्वर: ॥ १७ ॥
ANAVYA
उत्तम: पुरुष: तु अन्य: (एव) (अस्ति), य: लोकत्रयम् आविश्य
बिभर्ति (च) अव्यय: ईश्वर: (च) परमात्मा इति उदाहृत:।
बिभर्ति (च) अव्यय: ईश्वर: (च) परमात्मा इति उदाहृत:।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
उत्तम: [((इन दोनों से)) उत्तम], पुरुष: [पुरुष], तु [तो], अन्य: (एव अस्ति) [अन्य (ही है),], य: [जो], लोकत्रयम् [तीनों लोकों में], आविश्य [प्रवेश करके],
बिभर्ति (च) [सबका धारण-पोषण करता है (एवं),], अव्यय: [अविनाशी,], ईश्वर: (च) [परमेश्वर (और)], परमात्मा [परमात्मा], इति [इस प्रकार], उदाहृत: [कहा गया है।],
बिभर्ति (च) [सबका धारण-पोषण करता है (एवं),], अव्यय: [अविनाशी,], ईश्वर: (च) [परमेश्वर (और)], परमात्मा [परमात्मा], इति [इस प्रकार], उदाहृत: [कहा गया है।],
ANUVAAD
((इन दोनों से)) उत्तम पुरुष तो अन्य (ही है), जो तीनों लोकों में प्रवेश करके
सबका धारण-पोषण करता है (एवं), अविनाशी, परमेश्वर (और) परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।
सबका धारण-पोषण करता है (एवं), अविनाशी, परमेश्वर (और) परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।