SHLOKA
असक्तिरनभिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु।
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु।।13.9।।
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु।।13.9।।
PADACHHED
असक्ति:_अनभिष्वङ्ग:, पुत्र-दार-गृहादिषु,
नित्यम् , च, सम-चित्तत्वम्_इष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ ९ ॥
नित्यम् , च, सम-चित्तत्वम्_इष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ ९ ॥
ANAVYA
पुत्रदारगृहादिषु असक्ति: अनभिष्वङ्ग: च
इष्टानिष्टोपपत्तिषु नित्यम् समचित्तत्वम् -
इष्टानिष्टोपपत्तिषु नित्यम् समचित्तत्वम् -
ANAVYA-INLINE-GLOSS
पुत्रदारगृहादिषु [पुत्र-स्त्री-घर और धन आदि में], असक्ति: [आसक्ति का अभाव,], अनभिष्वङ्ग: [ममता का न होना], च [तथा],
इष्टानिष्टोपपत्तिषु [प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में], नित्यम् [सदा ही], समचित्तत्वम् [चित्त का सम रहना -],
इष्टानिष्टोपपत्तिषु [प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में], नित्यम् [सदा ही], समचित्तत्वम् [चित्त का सम रहना -],
ANUVAAD
पुत्र-स्त्री-घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा
प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना -
प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना -