SHLOKA
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्।।13.8।।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्।।13.8।।
PADACHHED
इन्द्रियार्थेषु, वैराग्यम्_अनहङ्कार:, एव, च,
जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दु:ख-दोषानुदर्शनम् ॥ ८ ॥
जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दु:ख-दोषानुदर्शनम् ॥ ८ ॥
ANAVYA
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यं च
अनहङ्कार: एव जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम्।
अनहङ्कार: एव जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम्।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
इन्द्रियार्थेषु [इन्द्रियों के ((शब्दादि)) विषयों में], वैराग्यम् [आसक्ति का अभाव], च [और],
अनहङ्कार: एव [अहंकार का भी अभाव], जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् [जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दु:ख और दोषों का बार-बार विचार करना-],
अनहङ्कार: एव [अहंकार का भी अभाव], जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् [जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दु:ख और दोषों का बार-बार विचार करना-],
ANUVAAD
इन्द्रियों के ((शब्दादि)) विषयों में आसक्ति का अभाव और
अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दु:ख और दोषों का बार-बार विचार करना-
अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दु:ख और दोषों का बार-बार विचार करना-