Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-7
SHLOKA
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।।13.7।।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।।13.7।।
PADACHHED
अमानित्वम्_अदम्भित्वम्_अहिंसा, क्षान्ति:_आर्जवम्,
आचार्योपासनम्, शौचम्, स्थैर्यम्_आत्म-विनिग्रह: ॥ ७ ॥
आचार्योपासनम्, शौचम्, स्थैर्यम्_आत्म-विनिग्रह: ॥ ७ ॥
ANAVYA
अमानित्वम् अदम्भित्वम् अहिंसा क्षान्ति:
आर्जवम् आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यम् (च) आत्मविनिग्रह: -
आर्जवम् आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यम् (च) आत्मविनिग्रह: -
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अमानित्वम् [श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव,], अदम्भित्वम् [कपट पूर्वक आचरण का अभाव,], अहिंसा [किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना,], क्षान्ति: [क्षमा भाव,],
आर्जवम् [मन-वाणी आदि की सरलता,], आचार्योपासनम् [श्रद्धा-भक्ति सहित गुरू की सेवा,], शौचम् [बाहर-भीतर की शुद्धि,], स्थैर्यम् (च) [अन्तःकरण की स्थिरता (और)], आत्मविनिग्रह: [मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह-],
आर्जवम् [मन-वाणी आदि की सरलता,], आचार्योपासनम् [श्रद्धा-भक्ति सहित गुरू की सेवा,], शौचम् [बाहर-भीतर की शुद्धि,], स्थैर्यम् (च) [अन्तःकरण की स्थिरता (और)], आत्मविनिग्रह: [मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह-],
ANUVAAD
श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव, कपट पूर्वक आचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना, क्षमा भाव,
मन-वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरू की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अन्तःकरण की स्थिरता (और) मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह-
मन-वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरू की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अन्तःकरण की स्थिरता (और) मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह-