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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-5-6

Chapter-13_1.5.6

SHLOKA

महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः।।13.5।।
इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतनाधृतिः।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्।।13.6।।

PADACHHED

महा-भूतानि_अहङ्कार:, बुद्धि_अव्यक्तम्_एव, च,
इन्द्रियाणि, दश_एकम्‌, च, पञ्च, च_इन्द्रिय-गोचरा: ॥ ५ ॥
इच्छा, द्वेष:, सुखम्‌, दुःखम्‌, सङ्घात:_चेतना_धृति:,
एतत्_क्षेत्रम्, समासेन, सविकारम्_उदाहृतम्‌ ॥ ६ ॥

ANAVYA

महाभूतानि अहङ्कार: बुद्धि: च अव्यक्तम् एव च दश
इन्द्रियाणि एकं (मनः) च पञ्च इन्द्रियगोचरा:,
(तथा) इच्छा द्वेष: सुखं दुःखं सङ्घात: चेतना (च) धृति:
(एवम्) सविकारम् एतत्‌ क्षेत्रं समासेन उदाहृतम्‌।


ANAVYA-INLINE-GLOSS

महाभूतानि [((पाँच)) महाभूत], अहङ्कार: [अहंकार,], बुद्धि: [बुद्धि], च [और], अव्यक्तम् [मूल प्रकृति], एव [भी], च [तथा], दश [दस],
इन्द्रियाणि [इन्द्रियाँ], एकम् (मनः) [एक (मन)], च [और], पञ्च [पाँच], इन्द्रियगोचरा: [इन्द्रियों के विषय अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध,],
(तथा) इच्छा [(तथा) इच्छा,], द्वेष: [द्वेष,], सुखम् [सुख,], दुःखम् [दु:ख,], सङ्घात: [स्थूल देह का पिण्ड], चेतना [चेतना],
(च) धृति: [(और) धृति], {(एवम्) [इस प्रकार]}, सविकारम् [विकारों के सहित], एतत् [यह], क्षेत्रम् [क्षेत्र], समासेन [संक्षेप में], उदाहृतम् [कहा गया है।],

ANUVAAD

((पाँच)) महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी तथा दस
इन्द्रियाँ एक (मन) और पाँच इन्द्रियों के विषय अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध,
(तथा) इच्छा, द्वेष, सुख, दु:ख, स्थूल देह का पिण्ड, चेतना (और)
धृति (इस प्रकार) विकारों के सहित यह क्षेत्र संक्षेप में कहा गया है।

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