Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-30
SHLOKA
यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।13.30।।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।13.30।।
PADACHHED
यदा, भूत-पृथग्-भावम्_एक-स्थम्_अनुपश्यति,
तत:, एव, च, विस्तारम्, ब्रह्म, सम्पद्यते तदा ॥ ३० ॥
तत:, एव, च, विस्तारम्, ब्रह्म, सम्पद्यते तदा ॥ ३० ॥
ANAVYA
यदा (अयं पुरुषः) भूतपृथग्भावम् एकस्थं च तत:
एव विस्तारम् अनुपश्यति तदा (सः) ब्रह्म सम्पद्यते।
एव विस्तारम् अनुपश्यति तदा (सः) ब्रह्म सम्पद्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
यदा (अयं पुरुषः) [जिस क्षण (यह पुरुष)], भूतपृथग्भावम् [भूतों के पृथक्-पृथक् भाव को], एकस्थम् [एक ((परमात्मा)) में ही स्थित], च [तथा], तत: [उस ((परमात्मा)) से],
एव [ही], विस्तारम् [((सम्पूर्ण भूतों का)) विस्तार], अनुपश्यति [देखता है,], तदा (सः) [उसी क्षण (वह)], ब्रह्म [((सच्चिदानन्दघन)) ब्रह्म को], सम्पद्यते [प्राप्त हो जाता है।],
एव [ही], विस्तारम् [((सम्पूर्ण भूतों का)) विस्तार], अनुपश्यति [देखता है,], तदा (सः) [उसी क्षण (वह)], ब्रह्म [((सच्चिदानन्दघन)) ब्रह्म को], सम्पद्यते [प्राप्त हो जाता है।],
ANUVAAD
जिस क्षण (यह पुरुष) भूतों के पृथक्-पृथक् भाव को एक ((परमात्मा)) में ही स्थित तथा उस ((परमात्मा)) से
ही ((सम्पूर्ण भूतों का)) विस्तार देखता है, उसी क्षण (वह) ((सच्चिदानन्दघन)) ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।
ही ((सम्पूर्ण भूतों का)) विस्तार देखता है, उसी क्षण (वह) ((सच्चिदानन्दघन)) ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।