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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-28

Chapter-13_1.28

SHLOKA

समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्।
न हिनस्त्यात्मनाऽऽत्मानं ततो याति परां गतिम्।।13.28।।

PADACHHED

समम्‌, पश्यन्_हि, सर्वत्र, समवस्थितम्_ईश्वरम्‌,
न, हिनस्ति_आत्मना_आत्मानम्‌, तत:, याति, पराम्‌, गतिम् ॥ २८ ॥

ANAVYA

हि (यः) सर्वत्र समवस्थितम्‌ ईश्वरं समं पश्यन्‌
आत्मना आत्मानं न हिनस्ति तत: (सः) परां गतिं याति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

हि (यः) [क्योंकि (जो ((पुरुष))], सर्वत्र [सब में], समवस्थितम् [समान भाव से स्थित], ईश्वरम् [परमेश्वर को], समम् [समान], पश्यन् [देखता हुआ],
आत्मना [अपने द्वारा], आत्मानम् [अपने को], न हिनस्ति [नष्ट नहीं करता,], तत: (सः) [इससे (वह)], पराम् [परम], गतिम् [गति को], याति [प्राप्त होता है।],

ANUVAAD

क्योंकि (जो) ((पुरुष)) सबमें समान भाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ
अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे (वह) परम गति को प्राप्त होता है।

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