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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-25

Chapter-13_1.25

SHLOKA

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।13.25।।

PADACHHED

अन्ये, तु_एवम्_अजानन्त:, श्रुत्वा_अन्येभ्य:, उपासते,
ते_अपि, च_अतितरन्ति_एव, मृत्युम्, श्रुति-परायणा: ॥ २५ ॥

ANAVYA

तु अन्ये एवम्‌ अजानन्त: अन्येभ्य: श्रुत्वा उपासते
च ते श्रुतिपरायणा: अपि मृत्युम् अतितरन्ति एव।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तु [परन्तु], अन्ये [((इनसे)) दूसरे अर्थात् जो मन्द बुद्धि वाले पुरुष हैं वे], एवम् [इस प्रकार], अजानन्त: [न जानते हुए], अन्येभ्य: [दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से], श्रुत्वा [सुनकर ((तदनुसार))], उपासते [उपासना करते हैं],
च [और], ते [वे], श्रुतिपरायणा: [श्रवण परायण (पुरुष)], अपि [भी], मृत्युम् [मृत्यु ((-रूप संसार सागर)) को], अतितरन्ति एव [नि:सन्देह तर जाते हैं।]

ANUVAAD

परन्तु ((इनसे)) दूसरे अर्थात् जो मन्द बुद्धि वाले पुरुष हैं वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात्‌ तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ((तदनुसार)) उपासना करते हैं
और वे श्रवण परायण (पुरुष) भी मृत्यु ((-रूप संसार सागर)) को नि:सन्देह तर जाते हैं।

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