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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-24

Chapter-13_1.24

SHLOKA

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना।
अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे।।13.24।।

PADACHHED

ध्यानेन_आत्मनि, पश्यन्ति, केचित्_आत्मानम्_आत्मना,
अन्ये, साङ्ख्येन, योगेन, कर्म-योगेन, च_अपरे ॥ २४ ॥

ANAVYA

(तत्) आत्मानं केचित्‌ (तु) आत्मना ध्यानेन आत्मनि पश्यन्ति;
अन्ये साङ्ख्येन योगेन च अपरे कर्मयोगेन (पश्यन्ति)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(तत्) आत्मानम् [(उस) परमात्मा को], केचित् (तु) [कितने ही ((मनुष्य)) (तो)], आत्मना [(शुद्ध हुई) सूक्ष्म बुद्धि से], ध्यानेन [ध्यान के द्वारा], आत्मनि [हृदय में], पश्यन्ति [देखते हैं,],
अन्ये [अन्य ((कितने ही))], साङ्ख्येन योगेन [ज्ञानयोग के द्वारा], च [और], अपरे [दूसरे ((कितने ही))], कर्मयोगेन [कर्मयोग के द्वारा], {(पश्यन्ति) [देखते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं।]},

ANUVAAD

(उस) परमात्मा को कितने ही ((मनुष्य)) (तो) (शुद्ध हुई) सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान के द्वारा हृदय में देखते हैं;
अन्य ((कितने ही)) ज्ञानयोग के द्वारा और दूसरे ((कितने ही)) कर्मयोग के द्वारा (देखते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं।)

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