SHLOKA
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।।13.20।।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।।13.20।।
PADACHHED
कार्य-करण-कर्तृत्वे, हेतु:, प्रकृति:_उच्यते,
पुरुष:, सुख-दु:खानाम्, भोक्तृत्वे, हेतु:_उच्यते ॥ २० ॥
पुरुष:, सुख-दु:खानाम्, भोक्तृत्वे, हेतु:_उच्यते ॥ २० ॥
ANAVYA
कार्यकरणकर्तृत्वे हेतु: प्रकृति: उच्यते (च)
पुरुष: सुखदु:खानाम् भोक्तृत्वे हेतु: उच्यते।
पुरुष: सुखदु:खानाम् भोक्तृत्वे हेतु: उच्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
कार्यकरणकर्तृत्वे [कार्य और करण को उत्पन्न करने में], हेतु: [हेतु], प्रकृति: [प्रकृति], उच्यते (च) [कही जाती है (और)],
पुरुष: [जीवात्मा], सुखदु:खानाम् [सुख-दु:खों के], भोक्तृत्वे [भोगने में], हेतु: [हेतु], उच्यते [कहा जाता है।]
पुरुष: [जीवात्मा], सुखदु:खानाम् [सुख-दु:खों के], भोक्तृत्वे [भोगने में], हेतु: [हेतु], उच्यते [कहा जाता है।]
ANUVAAD
कार्य और करण को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है (और)
जीवात्मा सुख-दु:खों के भोगने में हेतु कहा जाता है।
जीवात्मा सुख-दु:खों के भोगने में हेतु कहा जाता है।