SHLOKA
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान्।।13.19।।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान्।।13.19।।
PADACHHED
प्रकृतिम्, पुरुषम्, च_एव, विद्धि_अनादी, उभौ_अपि,
विकारान्_च, गुणान्_च_एव, विद्धि, प्रकृति-सम्भवान् ॥ १९ ॥
विकारान्_च, गुणान्_च_एव, विद्धि, प्रकृति-सम्भवान् ॥ १९ ॥
ANAVYA
प्रकृतिं च पुरुषम् उभौ एव (त्वम्) अनादी विद्धि च
विकारान् च गुणान् अपि प्रकृतिसम्भवान् एव विद्धि।
विकारान् च गुणान् अपि प्रकृतिसम्भवान् एव विद्धि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
प्रकृतिम् [प्रकृति], च [और], पुरुषम् [पुरुष], उभौ [इन दोनों को], एव (त्वम्) [ही (तुम)], अनादी [अनादि], विद्धि [जानो], च [और],
विकारान् [((राग-द्वेषादि)) विकारों को], च [तथा], गुणान् [त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को], अपि [भी], प्रकृतिसम्भवान् एव [प्रकृति से ही उत्पन्न], विद्धि [जानो।],
विकारान् [((राग-द्वेषादि)) विकारों को], च [तथा], गुणान् [त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को], अपि [भी], प्रकृतिसम्भवान् एव [प्रकृति से ही उत्पन्न], विद्धि [जानो।],
ANUVAAD
प्रकृति और पुरुष इन दोनों को ही (तुम) अनादि जानो और
((राग-द्वेषादि)) विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जानो।
((राग-द्वेषादि)) विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जानो।