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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-21

Chapter-13_1.21

SHLOKA

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान्।
कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु।।13.21।।

PADACHHED

पुरुष:, प्रकृति-स्थ:, हि, भुङ्क्ते, प्रकृति-जान्_गुणान्‌,
कारणम्‌, गुण-सङ्ग:_अस्य, सदसद्योनि-जन्मसु ॥ २१ ॥

ANAVYA

प्रकृतिस्थ: हि पुरुष: प्रकृतिजान्‌ गुणान्‌ भुङ्क्ते (तथा)
गुणसङ्ग: (एव) अस्य सदसद्योनिजन्मसु कारणम्‌ (भवति)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

प्रकृतिस्थ: [प्रकृति में स्थित], हि [ही], पुरुष: [पुरुष], प्रकृतिजान् [प्रकृति से उत्पन्न], गुणान् [त्रिगुणात्मक पदार्थो को], भुङ्क्ते [भोगता है], {(तथा) [और ((इन))],
गुणसङ्ग: (एव) [गुणों का संग (ही)], अस्य [इस ((जीवात्मा)) के], सदसद्योनिजन्मसु [अच्छी-बुरी योनियोंं में जन्म लेने का], कारणम् (भवति) [कारण है।],

ANUVAAD

प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है (और) ((इन))
गुणों का संग (ही) इस ((जीवात्मा)) के अच्छी-बुरी योनियोंं में जन्म लेने का कारण है।

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