Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-14
SHLOKA
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.14।।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.14।।
PADACHHED
सर्वेन्द्रिय-गुणाभासम्, सर्वेन्द्रिय-विवर्जितम्,
असक्तम्, सर्व-भृत्_च_एव, निर्गुणम्, गुण-भोक्तृ, च ॥ १४ ॥
असक्तम्, सर्व-भृत्_च_एव, निर्गुणम्, गुण-भोक्तृ, च ॥ १४ ॥
ANAVYA
(तत्) सर्वेन्द्रियगुणाभासम् (तथाऽपि) सर्वेन्द्रियविवर्जितम् (वर्तते) च
असक्तम् एव सर्वभृत् च निर्गुणं गुणभोक्तृ (वर्तते)।
असक्तम् एव सर्वभृत् च निर्गुणं गुणभोक्तृ (वर्तते)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(तत्) सर्वेन्द्रियगुणाभासम् [(वह) सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है,], {(तथाऽपि) [परन्तु वास्तव में]}, सर्वेन्द्रियविवर्जितम् (वर्तते) [सब इन्द्रियों से रहित है], च [तथा],
असक्तम् [आसक्ति रहित ((होने पर))], एव [भी], सर्वभृत् [सबका धारण-पोषण करने वाला], च [और], निर्गुणम् [निर्गुण होने पर ((भी))], गुणभोक्तृ (वर्तते) [गुणों को भोगने वाला है।],
असक्तम् [आसक्ति रहित ((होने पर))], एव [भी], सर्वभृत् [सबका धारण-पोषण करने वाला], च [और], निर्गुणम् [निर्गुण होने पर ((भी))], गुणभोक्तृ (वर्तते) [गुणों को भोगने वाला है।],
ANUVAAD
(वह) सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है, (परन्तु वास्तव में) सब इन्द्रियों से रहित है तथा
आसक्ति रहित ((होने पर)) भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर ((भी)) गुणों को भोगने वाला है।
आसक्ति रहित ((होने पर)) भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर ((भी)) गुणों को भोगने वाला है।