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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-13

Chapter-13_1.13

SHLOKA

सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।13.13।।

PADACHHED

सर्वत:, पाणि-पादम्‌, तत्_सर्वतो-अक्षि-शिरो-मुखम्‌,
सर्वत: श्रुतिमत्_लोके, सर्वम्_आवृत्य, तिष्ठति ॥ १३ ॥

ANAVYA

तत्‌ सर्वत: पाणिपादं सर्वतोअक्षिशिरोमुखम्‌ (तथा)
सर्वत: श्रुतिमत्‌ (वर्तते), (यत:) (तत्) लोके सर्वम्‌ आवृत्य तिष्ठति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तत् [वह], सर्वत: पाणिपादम् [सब ओर हाथ-पैर वाला,], सर्वतोअक्षिशिरोमुखम् (तथा) [सब ओर नेत्र, सिर और मुख वाला (तथा)],
सर्वत: श्रुतिमत् (वर्तते) [सब ओर कान वाला है।], {(यत:) [क्योंकि]}, {(तत्) [वह]}, लोके [संसार में], सर्वम् [सबको], आवृत्य [व्याप्त करके], तिष्ठति [स्थित है।],

ANUVAAD

वह सब ओर हाथ-पैर वाला, सब ओर नेत्र, सिर और मुख वाला (तथा)
सब ओर कान वाला है, (क्योंकि) (वह) संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है।

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