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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-12

Chapter-13_1.12

SHLOKA

ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते।।13.12।।

PADACHHED

ज्ञेयम्‌, यत्_तत्_प्रवक्ष्यामि, यत्_ज्ञात्वा_अमृतम्_अश्नुते,
अनादिमत्_परम्‌, ब्रह्म, न, सत्_तत्_न_असत्_उच्यते ॥ १२ ॥

ANAVYA

यत्‌ ज्ञेयं यत्‌ (च) ज्ञात्वा (जनः) अमृतम्‌ अश्नुते तत्‌ प्रवक्ष्यामि;
तत्‌ अनादिमत्‌ परं ब्रह्म न सत्‌ उच्यते न असत्‌ (एव) (उच्यते)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यत् [जो], ज्ञेयम् [जानने योग्य है], यत् (च) [(तथा) जिसको], ज्ञात्वा (जनः) [जानकर (मनुष्य)], अमृतम् [परमानन्द को], अश्नुते [प्राप्त होता है,], तत् [उसको], प्रवक्ष्यामि [भलीभाँति कहूँगा।],
तत् [वह], अनादिमत् [अनादि वाला], परम् [परम], ब्रह्म [ब्रह्म], न [न], सत् [सत्], उच्यते [कहा जाता है,], न [न], असत् (एव) [असत् (ही)], {(उच्यते) [कहा जाता है।],

ANUVAAD

जो जानने योग्य है (तथा) जिसको जानकर (मनुष्य) परमानन्द को प्राप्त होता है, उसको भलीभाँति कहूँगा।
वह अनादि वाला परम ब्रह्म न सत् कहा जाता है, न असत् (ही कहा जाता है।)

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