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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-11

Chapter-13_1.11

SHLOKA

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा।।13.11।।

PADACHHED

अध्यात्म-ज्ञान-नित्यत्वम्‌, तत्त्व-ज्ञानार्थ-दर्शनम्‌,
एतत्_ज्ञानम्_इति, प्रोक्तम्_अज्ञानम्, यत्_अत:_अन्यथा ॥ ११ ॥

ANAVYA

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं (च) तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्‌
एतत्‌ (सर्वम्) ज्ञानं (अस्ति) (च) यत्‌ अत: अन्यथा (अस्ति) (तत्) अज्ञानम् इति प्रोक्तम्।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम् (च) [अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति (और)], तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् [तत्वज्ञान के अर्थरूप परमात्मा को ही देखना],
एतत् (सर्वम्) [यह (सब)], ज्ञानम् (अस्ति) [ज्ञान है], {(च) [और], यत् [जो], अत: [इससे], अन्यथा (अस्ति) [विपरीत है,], {(तत्) [वह]}, अज्ञानम् [अज्ञान है,], इति [ऐसा], प्रोक्तम् [कहा गया है।]

ANUVAAD

अध्यात्मज्ञान में नित्य स्थिति (और) तत्वज्ञान के अर्थरूप (परमात्मा) को ही देखना
यह (सब) ज्ञान है (और) जो इससे विपरीत है, (वह) अज्ञान है, ऐसा कहा गया है।

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