Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-6

Chapter-11_1.6

SHLOKA

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याऽश्चर्याणि भारत।।11.6।।

PADACHHED

पश्य_आदित्यान्_वसून्‌_रुद्रान्_अश्विनौ, मरुत:_तथा,
बहूनि_अदृष्ट-पूर्वाणि, पश्य_आश्चर्याणि, भारत ॥ ६ ॥

ANAVYA

(हे) भारत! (त्वम्) (मयि) आदित्यान् वसून् रुद्रान् अश्विनौ
मरुत: (च) पश्य तथा बहूनि अदृष्टपूर्वाणि आश्चर्याणि पश्य ।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) भारत! [हे भरतवंशी अर्जुन!], {(त्वम्) [तुम]}, (मयि) [मुझमें]}, आदित्यान् [आदित्यों को अर्थात् अदिति के द्वादश पुत्रों को,], वसून् [((आठ)) वसुओं को,], रुद्रान् [((एकादश)) रुद्रों को,], अश्विनौ [((दोनों)) अश्विनीकुमारों को],
मरुत: (च) [(और) ((उनचास)) मरुद्गणों को], पश्य [देखो], तथा [तथा (और) ((भी))], बहूनि [बहुत से], अदृष्टपूर्वाणि [पहले न देखे हुए], आश्चर्याणि [आश्चर्यमय रूपों को], पश्य [देखो।],

ANUVAAD

हे भरतवंशी अर्जुन! (तुम) (मुझमें) आदित्यों को अर्थात् अदिति के द्वादश पुत्रों को, ((आठ)) वसुओं को, ((एकादश)) रुद्रों को, ((दोनों)) अश्विनी कुमारों को (और)
((उनचास)) मरुद्गणों को देखो तथा (और) ((भी)) बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देखो।

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