Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-44
SHLOKA
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।11.44।।
प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।11.44।।
PADACHHED
तस्मात्_प्रणम्य, प्रणिधाय, कायम्, प्रसादये, त्वाम्_अहम्_ईशम्_ईड्यम्, पिता_इव, पुत्रस्य, सखा_इव,
सख्यु:, प्रिय:, प्रियाया:_अर्हसि, देव, सोढुम् ॥ ४४ ॥
सख्यु:, प्रिय:, प्रियाया:_अर्हसि, देव, सोढुम् ॥ ४४ ॥
ANAVYA
तस्मात् अहं कायं प्रणिधाय प्रणम्य ईड्यं त्वाम् ईशं प्रसादये; (हे) देव! पिता इव
पुत्रस्य सखा इव सख्युः (च) प्रिय: (इव) प्रियाया: सोढुम् अर्हसि ।
पुत्रस्य सखा इव सख्युः (च) प्रिय: (इव) प्रियाया: सोढुम् अर्हसि ।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तस्मात् [अतएव (हे प्रभो!)], अहम् [मैं], कायम् [शरीर को], प्रणिधाय [भलीभाँति चरणों में निवेदित कर,], प्रणम्य [प्रणाम करके,], ईड्यम् [स्तुति करने योग्य], त्वाम् [आप], ईशम् [ईश्वर को], प्रसादये [प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ।], (हे) देव! [हे देव!], पिता [पिता], इव [जैसे],
पुत्रस्य [पुत्र के,], सखा [सखा], इव [जैसे], सख्युः (च) [सखा के (और)], प्रिय: [पति], {(इव) [जैसे]}, प्रियाया: [प्रियतमा पत्नी के ((अपराध को सहन करते हैं, वैसे ही आप भी मेरे अपराध को))], सोढुम् [सहन करने], अर्हसि [योग्य हैं।],
पुत्रस्य [पुत्र के,], सखा [सखा], इव [जैसे], सख्युः (च) [सखा के (और)], प्रिय: [पति], {(इव) [जैसे]}, प्रियाया: [प्रियतमा पत्नी के ((अपराध को सहन करते हैं, वैसे ही आप भी मेरे अपराध को))], सोढुम् [सहन करने], अर्हसि [योग्य हैं।],
ANUVAAD
अतएव (हे प्रभो!) मैं शरीर को भलीभाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ। हे देव! पिता जैसे
पुत्र के, सखा जैसे सखा के (और) पति जैसे प्रियतमा पत्नी के ((अपराध को सहन करते हैं, वैसे ही आप भी मेरे अपराध को)) सहन करने योग्य हैं।
पुत्र के, सखा जैसे सखा के (और) पति जैसे प्रियतमा पत्नी के ((अपराध को सहन करते हैं, वैसे ही आप भी मेरे अपराध को)) सहन करने योग्य हैं।