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Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-40

Chapter-11_1.40

SHLOKA

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।11.40।।

PADACHHED

नम:, पुरस्तात्_अथ, पृष्ठत:_ते, नम:_अस्तु, ते,
सर्वत:, एव, सर्व, अनन्त-वीर्य_अमित-विक्रम:_त्वम्‌,
सर्वम्‌, समाप्नोषि, तत:_असि, सर्व: ॥ ४० ॥

ANAVYA

(हे) अनन्तवीर्य! ते पुरस्तात् अथ पृष्ठत: (अपि) नम:; (हे) सर्व! ते सर्वत: एव
नमः अस्तु; (हि) अमितविक्रम: त्वं सर्वं समाप्नोषि, तत: (त्वम्) सर्व: असि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) अनन्तवीर्य! [हे अनन्त सामर्थ्य वाले!], ते [आप के लिये], पुरस्तात् [आगे से], अथ [और], पृष्ठत: (अपि) [पीछे से (भी)], नम: [नमस्कार।], (हे) सर्व! [हे सर्वात्मन्!], ते [आप के लिये], सर्वत: [सब ओर से], एव [ही],
नमः [नमस्कार], अस्तु [हो।], {(हि) [क्योंकि]}, अमितविक्रम: [अनन्त पराक्रमशाली], त्वम् [आप], सर्वम् [सम्पूर्ण ((संसार)) को], समाप्नोषि [व्याप्त किये हुए हैं,], तत: (त्वम्) [इससे (आप) ((ही))], सर्व: [सर्वरूप], असि [हैं।],

ANUVAAD

हे अनन्त सामर्थ्य वाले! आप के लिये आगे से और पीछे से (भी) नमस्कार। हे सर्वात्मन्! आप के लिये सब ओर से ही
नमस्कार हो। (क्योंकि) अनन्त पराक्रमशाली आप सम्पूर्ण ((संसार)) को व्याप्त किये हुए हैं, इससे (आप) ((ही)) सर्वरूप हैं।

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