SHLOKA
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।11.2।।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।11.2।।
PADACHHED
भवाप्ययौ, हि, भूतानाम्, श्रुतौै, विस्तरश:, मया,
त्वत्त:, कमल-पत्राक्ष, माहात्म्यम्_अपि, च_अव्ययम् ॥ २ ॥
त्वत्त:, कमल-पत्राक्ष, माहात्म्यम्_अपि, च_अव्ययम् ॥ २ ॥
ANAVYA
हि (हे) कमलपत्राक्ष! मया त्वत्त: भूतानां भवाप्ययौ
विस्तरश: श्रुतौै च (ते) अव्ययं माहात्म्यम् अपि (श्रुतम्)।
विस्तरश: श्रुतौै च (ते) अव्ययं माहात्म्यम् अपि (श्रुतम्)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि], (हे) कमलपत्राक्ष! [हे कमलनेत्र ((श्रीकृष्ण!))], मया [मैंने], त्वत्त: [आप से], भूतानाम् [भूतों की], भवाप्ययौ [उत्पत्ति और प्रलय],
विस्तरश: [विस्तार पूर्वक], श्रुतौै [सुने हैं], च (ते) [तथा (आपकी)], अव्ययम् [अविनाशी], माहात्म्यम् [महिमा], अपि (श्रुतम्) [भी (सुनी है)।],
विस्तरश: [विस्तार पूर्वक], श्रुतौै [सुने हैं], च (ते) [तथा (आपकी)], अव्ययम् [अविनाशी], माहात्म्यम् [महिमा], अपि (श्रुतम्) [भी (सुनी है)।],
ANUVAAD
क्योंकि हे कमलनेत्र ((श्रीकृष्ण!)) मैंने आपसे भूतों की उत्पत्ति और प्रलय
विस्तार पूर्वक सुने हैं तथा (आपकी) अविनाशी महिमा भी (सुनी है)।
विस्तार पूर्वक सुने हैं तथा (आपकी) अविनाशी महिमा भी (सुनी है)।