Chapter 10 – विभूतियोग Shloka-9

Chapter-10_1.9

SHLOKA (श्लोक)

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।।10.9।।

PADACHHED (पदच्छेद)

मच्चित्ता:, मद्गत-प्राणा:, बोधयन्त:, परस्परम्‌,
कथयन्त:_च, माम्‌, नित्यम्‌, तुष्यन्ति, च, रमन्ति, च ॥ ९ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

मच्चित्ता: (च) मद्गतप्राणा: परस्परं बोधयन्त:
च कथयन्त: च नित्यं तुष्यन्ति च माम् (एव) रमन्ति।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

मच्चित्ता: (च) [निरन्तर मुझमें मन लगाने वाले (और)], मद्गतप्राणा: [मुझमें ही प्राणो को अर्पण करने वाले ((भक्तजन))], परस्परम् [((मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा)) आपस में], बोधयन्त: [((मेरे प्रभाव को)) जनाते हुए],
च [तथा], कथयन्त: [((गुण और प्रभाव सहित मेरा)) कथन करते हुए], च [ही], नित्यम् [निरन्तर], तुष्यन्ति [सन्तुष्ट होते हैं], च [और], माम् (एव) [मुझ ((वासुदेव)) में (ही)], रमन्ति [((निरन्तर)) रमण करते हैं।],

हिन्दी भाषांतर

निरन्तर मुझमें मन लगाने वाले (और) मुझमें ही प्राणो को अर्पण करने वाले ((भक्तजन)) ((मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा)) आपस में ((मेरे प्रभाव को)) जनाते हुए
तथा ((गुण और प्रभाव सहित मेरा)) कथन करते हुए ही निरन्तर सन्तुष्ट होते हैं और मुझ ((वासुदेव)) में (ही) ((निरन्तर)) रमण करते हैं।

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