Chapter 10 – विभूतियोग Shloka-8

Chapter-10_1.8

SHLOKA (श्लोक)

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।।10.8।।

PADACHHED (पदच्छेद)

अहम्‌, सर्वस्य, प्रभव:, मत्त:, सर्वम्‌, प्रवर्तते,
इति, मत्वा, भजन्ते, माम्‌, बुधा:, भाव-समन्विता: ॥ ८ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

अहं (एव) सर्वस्य प्रभव: (अस्मि), (च), मत्त: सर्वं प्रवर्तते इति
मत्वा भावसमन्विता: बुधा: मां (एव) भजन्ते।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

अहम् (एव) [मैं ((वासुदेव)) ही], सर्वस्य [सम्पूर्ण जगत् की], प्रभव: (अस्मि), (च) [उत्पत्ति का कारण हूँ (और)], मत्त: [मुझसे ही], सर्वम् [सम्पूर्ण जगत्], प्रवर्तते [चेष्टा करता है,], इति [इस प्रकार],
मत्वा [समझकर], भावसमन्विता: [श्रद्धा और भक्ति से युक्त], बुधा: [बुद्धिमान् ((भक्तजन))], माम् (एव) [मुझ परमेश्वर को (ही)], भजन्ते [(निरन्तर) भजते हैं।],

हिन्दी भाषांतर

मैं ((वासुदेव)) (ही) सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ (और) मुझसे ही सम्पूर्ण जगत् चेष्टा करता है, इस प्रकार
समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान् ((भक्तजन)) मुझ परमेश्वर को (ही) (निरन्तर) भजते हैं।

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