SHLOKA
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।10.10।।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।10.10।।
PADACHHED
तेषाम्, सतत-युक्तानाम्, भजताम्, प्रीति-पूर्वकम्,
ददामि, बुद्धि-योगम्, तम्, येन, माम्_उपयान्ति, ते ॥ १० ॥
ददामि, बुद्धि-योगम्, तम्, येन, माम्_उपयान्ति, ते ॥ १० ॥
ANAVYA
तेषां सततयुक्तानां (च) प्रीतिपूर्वकं भजतां (अहम्)
तं बुद्धियोगं ददामि येन ते माम् (एव) उपयान्ति।
तं बुद्धियोगं ददामि येन ते माम् (एव) उपयान्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तेषाम् [उन], सततयुक्तानाम् (च) [निरन्तर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए (और)], प्रीतिपूर्वकम् [प्रेमपूर्वक], भजताम् (अहम्) [भजने वाले ((भक्तों)) को (मैं)],
तम् [वह], बुद्धियोगम् [तत्त्वज्ञानरूप योग], ददामि [देता हूँ,], येन [जिससे], ते [वे], माम् (एव) [मुझको (ही)], उपयान्ति [प्राप्त होते हैं।],
तम् [वह], बुद्धियोगम् [तत्त्वज्ञानरूप योग], ददामि [देता हूँ,], येन [जिससे], ते [वे], माम् (एव) [मुझको (ही)], उपयान्ति [प्राप्त होते हैं।],
ANUVAAD
उन निरन्तर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए (और) प्रेमपूर्वक भजने वाले ((भक्तों)) को (मैं)
वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ जिससे वे मुझको (ही) प्राप्त होते हैं।
वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ जिससे वे मुझको (ही) प्राप्त होते हैं।