SHLOKA
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः।।10.7।।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः।।10.7।।
PADACHHED
एताम्, विभूतिम्, योगम्, च, मम, य:, वेत्ति, तत्त्वत:,
स:_अविकम्पेन, योगेन, युज्यते, न_अत्र, संशय: ॥ ७ ॥
स:_अविकम्पेन, योगेन, युज्यते, न_अत्र, संशय: ॥ ७ ॥
ANAVYA
य: (पुरुषः) मम एतां विभूतिं च योगं तत्वतः
वेत्ति, स: अविकम्पेन योगेन युज्यते अत्र संशय: न (अस्ति)।
वेत्ति, स: अविकम्पेन योगेन युज्यते अत्र संशय: न (अस्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
य: (पुरुषः) [जो (पुरुष)], मम [मेरी], एताम् [इस], विभूतिम् [((परमैश्वर्यरूप)) विभूति को], च [और], योगम् [योगशक्ति को], तत्वतः [तत्व से],
वेत्ति [जानता है,], स: [वह], अविकम्पेन [निश्चल], योगेन [भक्ति योग से], युज्यते [युक्त हो जाता है-], अत्र [इसमें ((कुछ भी))], संशय: [संशय], न (अस्ति) [नहीं है।],
वेत्ति [जानता है,], स: [वह], अविकम्पेन [निश्चल], योगेन [भक्ति योग से], युज्यते [युक्त हो जाता है-], अत्र [इसमें ((कुछ भी))], संशय: [संशय], न (अस्ति) [नहीं है।],
ANUVAAD
जो (पुरुष) मेरी इस ((परमैश्वर्यरूप)) विभूति को और योगशक्ति को तत्व से
जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है- इसमें ((कुछ भी)) संशय नहीं है।
जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है- इसमें ((कुछ भी)) संशय नहीं है।