Chapter 10 – विभूतियोग Shloka-40

Chapter-10_1.40

SHLOKA

नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परंतप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया।।10.40।।

PADACHHED

न_अन्त:_अस्ति, मम, दिव्यानाम्‌, विभूतीनाम्‌, परन्तप,
एष:, तु_उद्देशत:, प्रोक्त:, विभूते:_विस्तर:, मया ॥ ४० ॥

ANAVYA

(हे) परन्तप! मम दिव्यानां विभूतीनाम् अन्त: न अस्ति,
मया विभूते: एष: विस्तर: तु उद्देशत: प्रोक्त:।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) परन्तप! [हे परंतप!], मम [मेरी], दिव्यानाम् [दिव्य], विभूतीनाम् [विभूतियों का], अन्त: [अंत], न [नहीं], अस्ति [है,],
मया [मैंने ((अपनी))], विभूते: [विभूतियों का], एष: [यह], विस्तर: [विस्तार], तु [तो ((तुम्हारे लिये))], उद्देशत: [एकदेश से अर्थात् संक्षेप से], प्रोक्त: [कहा है।],

ANUVAAD

हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है,
मैंने ((अपनी)) विभूतियों का यह विस्तार तो ((तुम्हारे लिये)) एकदेश से अर्थात् संक्षेप से कहा है।

Leave a Reply