Chapter 10 – विभूतियोग Shloka-12-13

Chapter-10_1.12.13

SHLOKA (श्लोक)

अर्जुन उवाच -
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्।।10.12।।
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे।।10.13।।

PADACHHED (पदच्छेद)

अर्जुन उवाच -
परम्‌, ब्रह्म, परम्‌, धाम, पवित्रम्, परमम्‌, भवान्‌,
पुरुषम्‌, शाश्वतम्‌, दिव्यम्_आदि-देवम्_अजम्‌, विभुम्‌,
आहु:_त्वाम्_ऋषय:, सर्वे, देवर्षि:_नारद:_तथा,
असित:, देवल:, व्यास:, स्वयम्‌, च_एव, ब्रवीषि, मे ॥ १२-१३ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

अर्जुन उवाच -
भवान् परं ब्रह्म परं धाम (च) परमं पवित्रं (अस्ति) (अतः) त्वां सर्वे ऋषय: शाश्वतं दिव्यं पुरुषम् (च) आदिदेवम्
अजम् विभुम्‌ (च) आहु: तथा देवर्षि: नारद: (च) असितः (च) देवलः व्यासः (च) (आहुः,) च स्वयम् (त्वम्) एव मे ब्रवीषि।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

अर्जुन उवाच - [अर्जुन ने कहा], भवान् [आप], परम् [परम], ब्रह्म [ब्रह्म,], परम् [परम], धाम (च) [धाम (और)], परमम् [परम], पवित्रम् (अस्ति) [पवित्र हैं,], {(अतः) [इसलिए]}, त्वाम् [आपको], सर्वे [सब], ऋषय: [ऋषिगण], शाश्वतम् [सनातन], दिव्यम् [दिव्य], पुरुषम् (च) [पुरुष (एवं)], आदिदेवम् [((देवों का भी)) आदिदेव,],
अजम् [अजन्मा], विभुम् (च) [(और) सर्वव्यापी], आहु: [कहते हैं,], तथा [वैसे ही], देवर्षि: [देवर्षि], नारद: (च) [नारद (तथा)], असितः (च) [असित (और)], देवलः [देवल ऋषि], व्यासः (च) (आहुः) [(तथा) महर्षि व्यास (भी कहते हैं)], च [और], स्वयम् (त्वम्) [स्वयं (आप)], एव [भी], मे [मेरे प्रति], ब्रवीषि [कहते हैं।]'

हिन्दी भाषांतर

अर्जुन ने कहा - आप परम ब्रह्म, परम धाम (और) परम पवित्र हैं, (इसलिए) आपको सब ऋषिगण सनातन दिव्य पुरुष (एवं) ((देवों का भी)) आदिदेव,
अजन्मा (और) सर्वव्यापी कहते हैं, वैसे ही देवर्षि नारद (तथा) असित (और) देवल ऋषि (तथा) महर्षि व्यास (भी कहते हैं) और स्वयं (आप) भी मेरे प्रति कहते हैं।

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